फरवरी २००५
मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार आदि मानो
आत्मा रूपी झील पर उठने वाली तरंगे हैं, जो आती हैं और मिट जाती हैं. मन में हर पल
नये-नये विचार उठते रहते हैं और साथ ही समाप्त होते रहते हैं. यदि हम किसी विचार
को पकड़ कर बैठ जाते हैं तो रुके हुए पानी जैसी काई उस पर जमने लगती है, यदि वह
विचार सद् है तो कुछ समय के लिए अन्य अशुभ विचारों को ढक लेता है पर जब तक आत्मा
तक हमारी पहुंच नहीं होगी, ऊपर-ऊपर का बदलाव विशेष बदलाव नहीं देता. क्षण-प्रतिक्षण
हमारी बुद्धि बदलती रहती है, सुख-सुविधा की ओर खींचती है. प्रेय के मार्ग पर ले
जाती है, श्रेय को तजकर हम दुःख ही पाते हैं. आत्मा की झील में उतरे बिना काम नहीं
चलेगा. आत्म ज्ञान के बिना हम सुरक्षित नहीं है.
आत्मा की झील में उतरे बिना काम नहीं चलेगा. आत्म ज्ञान के बिना हम सुरक्षित नहीं है.
ReplyDeletesukhad evam sarthak kathan ....
अनुपमा जी व सरिता जी, आपका स्वागत व आभार !
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति बहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लागर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शनिवार हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल :007 \
ReplyDeleteलिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .