मार्च २००५
भ्रान्ति
और सत्य का पता तब तक नहीं चलता जब तक हम
चेतना के प्रति सचेत नहीं होते. धर्म का आदि बिंदु अतीन्द्रिय चेतना है, जब तक
पदार्थ से परे आत्मा की चेतना का ज्ञान नहीं होगा तब तक हम द्वंद्व के शिकार होते
रहेंगे. हम छिलकों से ही संतुष्ट न हो जाएँ, मूल को भी पायें, तब जो परिवर्तन
हमारे भीतर होगा वह अतुलनीय होगा. मुक्ति का आरम्भ यहीं से होता है. हम यदि सुख के
लिए पदार्थ को ही साधन बनाते हैं तो दुखी होने के लिए तैयार रहना होगा. यदि अक्षय
सुख का स्रोत जो हमारे भीतर है, उसका अनुभव करते हैं तो जीवन में परम भक्ति का आगमन
होता है. परमात्मा की शक्ति व प्रेम का अनुभव हर क्षण हमें होने लगता है.
बहुत सुंदर ...!!
ReplyDeleteबिल्कुल सच कहा आपने ....
ReplyDeleteनमस्कार!
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल बुधवार (25-09-2013) को ब्लॉग प्रसारण : 127 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
सादर
सरिता भाटिया
बस इक नजर चाहिए :
''गुज़ारिश''
पदार्थ तो भौतिक ऊर्जा है। सुख साधन हैं संसार के जो अल्पकाली हैं आत्मा अनादि है परमात्मा उससे सीनियर नहीं है लेकिन उसे संसार के साथ नहीं भगवान् के साथ रहना चाहिए उसकी ख़ुशी में रहना चाहिए आत्मानंद को प्राप्त करके। बढ़िया पोस्ट।
ReplyDeletebohat hi sarthak alekh
ReplyDelete