फरवरी २००५
जीवन में ज्ञान हो और वह ज्ञान आचरण
में भी उतरे तभी शांति का अनुभव हो सकता है ! आनन्द का अनुभव हमें तभी होता है जब
भीतर विरोध नहीं रहता. हमारा किसी से विरोध हो अथवा किसी का हमसे विरोध हो, हमारे
कारण कोई दुखी हो अथवा हम किसी के कारण दुखी हों, दोनों ही स्थितियों में हम ईश्वर
का विरोध करते हैं. हमें जो कुछ भी चाहिए उस परम ने हमारे ही भीतर भर दिया है, हम
हृदय का कपाट बंद करके बाहर घूमते रहते हैं. थक-हार कर दुखी होते हैं अपने भीतर
बहते हुए शीतल झरने पर नहीं आते, जो प्रेम से, आनन्द से निरंतर बह रहा है. हम उस
प्रभु के गीत गाते हैं फिर भी कभी अहंकार, कभी हीनता से ग्रसित हो जाते हैं. जगत
के साथ एक्य का अनुभव होने पर दोनों ही विलीन हो जाते हैं.
बहुत सुन्दर लेख,
ReplyDeleteमैंने तो अपनी भाषा को प्यार किया है - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः11
बहुत बढिया
ReplyDeleteबहुत उत्तम विचार ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर विचारों की प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteRECENT POST : फूल बिछा न सको
यह एका ही तो दुरूह है..:(
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी, यह एक ध्यान से ही मिलता है..
Deleteआनन्द का अनुभव हमें तभी होता है जब भीतर विरोध नहीं रहता.
ReplyDeleteयही तो है वह स्थिति -पानी में मीन प्यासी रे। बहुत सुन्दर मोती पिरोये हैं। ईश्वर का वास तो मेरे हृदय में हैं मैं उसे बाहर ढूंढ रहा हूँ।
ReplyDeleteदर्शन जी, धीरेन्द्र जी, राहुल जी, वीरू भाई, महेंद्र जी, दिगम्बर जी आप सभी स्वागत व आभार !
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