फरवरी २००५
जब जीवन का लक्ष्य तय हो जाता है तो
रास्ता मिलने लगता है, हमारे अंतर की सच्ची पुकार कभी भी अनसुनी नहीं रहती, परम
पिता परमात्मा हमारे लिए वह सारे साधन जुटा देता है जो हमारे विकास के लिए आवश्यक
हैं. हमारा जीवन प्रकृति के सूक्ष्म नियमों द्वारा संचालित होता है. पूर्व में
किये गये कर्मों के अनुसार हमारे भावी कर्म नियत होते हैं, प्रमादवश मानव स्वयं को
कर्ता मानता है, लेकिन वास्तव में प्रकृति के गुणों के अनुसार ही उसके कर्म होते
हैं. साधक साधना के द्वारा इन गुणों के पार जाना चाहता है. चेतना में जगा हुआ जीव ही
सचेत होकर कर्म करता है, जब वह गुणों के पार चला जाता है.
चेतना में जगा हुआ जीव ही सचेत होकर कर्म करता है, जब वह गुणों के पार चला जाता है.
ReplyDeleteगुनातीत होना माना सुख दुःख उसमें होकर गुज़र जाएँ बिना अपना प्रभाव छोड़े ऐसा व्यक्ति फिर भगवान् में स्थित हो जाता है भगवान् को प्राप्त हो जाता है।
बहुत सुन्दर सार प्रस्तुत किया हैआपने अनिता जी।
ॐ शान्ति
कहते हैं न मन साफ़ हो नियत में सच्चाई हो तो इंसान कुछ भी हासिल कर सकता है। पर मंजिल तक पहुँचने का रास्ता नेक हो या गलत, फल इसी जनम में मिलता है, क्योंकि स्वर्ग और नर्क दोनों यहीं हैं।
ReplyDeleteराजेन्द्र जी, वीरू भाई, व अपर्णा जी, आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteबहुत सत्य एवं सुन्दर ..
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