Monday, September 9, 2013

तोरा मन दर्पण कहलाये

फरवरी २००५ 
जगत के साथ जो हमारा व्यवहार है, वह प्रतिबिम्ब है हमारे भीतर के जगत का, लोगों के साथ हमारा सबंध दर्पण के समान है. दूसरों में जो कमियां हमें दिखाई देती है, वास्तव में वे हमारे भीतर होती है, और हम उन्हें निकालना चाहते हैं, पर यदि हम बाहर को ही देखते रहे और यह न देखा कि हमारे व्यवहार का संचालन कौन कर रहा है तो हम स्वयं को नहीं बदल पाएंगे. हमारा आचरण भले ही उसके विपरीत हो पर भीतर का भाव वही रहेगा. ध्यान के समय हम उस गहराई तक पहुंच सकते हैं, और स्वयं को सुझाव देकर परिवर्तन ला सकते हैं. हम अपने पूर्व जीवन को यदि मुडकर देखें तो पाते हैं, मन के अधीन रहकर सदा दुःख ही जाना है, मन की गहराई में समाधान मिलता है, इसी समाधान का अनुभव ही सच्ची आध्यत्मिकता है. प्रभु की शरण में जाकर हम इसे पा सकते हैं.

7 comments:

  1. So true!
    May we get the strength and inclination for its implementation!

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

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  3. सच और बहुत सुंदर प्रस्तुति ,,
    गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाए !

    RECENT POST : समझ में आया बापू .

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

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  5. जो हमारा व्यवहार है, वह प्रतिबिम्ब है हमारे भीतर के जगत का
    बिल्‍कुल सही कहा आपने

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  6. गहरे पानी पैठ। सुन्दर मनोहर।

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  7. अनुपमा जी, प्रतिभा जी, धीरेन्द्र जी, दर्शन जी, सदा जी व वीरू भाई आप सभी का स्वागत व आभार !

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