मार्च २००५
निर्मलता शांति
को प्रकट करती है. आकाश यदि घनमालाओं से आवृत हो तो इतना विशाल प्रतीत नहीं होता,
शुभ्र गगन अनंत शांति को प्रकट करता है. उसी तरह चिदाकाश भी जब वृत्तियों से रहित
होता है तो निर्मलता को प्रकट करता है. सहज प्रेम भी उसी से फूटता है. भक्त फूल की
तरह, नदी व सूर्य की तरह देना चाहता है, वह अपना आप खाली कर देना चाहता है,
क्योंकि वह उसमें अनंत को भरना चाहता है, एक तरफ वह खाली होता जाता है और दूसरी
तरफ भरता जाता है. पूर्ण मदा पूर्ण मिदं, पूर्णात पूर्ण मुदच्यत...अपने जीवन में
जीता है. सत्य को अपने जीवन में घटते देखता है. शास्त्रों में जो लिखा है, वह
अनुभूत सत्य है, जब भक्त के जीवन में वह घटित होता है तो शास्त्र के प्रति उसका
प्रेम और बढ़ जाता है. ईश्वर की यह सृष्टि कितनी अद्भुत है.
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (26-09-2013) को "ब्लॉग प्रसारण : अंक 128" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
ReplyDeleteसमर्पण का सुंदर भाव ....!!
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ReplyDeleteईश्वर की यह सृष्टि कितनी अद्भुत है.
नई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )
सशक्त भाषा में जीवन के सार को आपने बाखूब अभिव्यक्त किया है अनीता जी…
ReplyDeleteराजेन्द्र जी, अनुपमा जी, धीरेंद्र जी तथा अपर्णा जी आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति .खुबसूरत रचना
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें।
सादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
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