सितम्बर २००९
परमात्मा सृजन
तो करता है, सृष्टा तो है पर कर्ता नहीं. शास्त्र कहते हैं परमात्मा नर्त्तक है,
वह है और नृत्य भी हो रहा है, नृत्य उसके बिना नहीं हो सकता पर वह नृत्य के बिना
भी हो सकता है. परमात्मा प्रकृति के साथ एक भी है और भिन्न भी. सारी प्रकृति वर्तती
है उसकी उपस्थिति में ही, पर परमात्मा स्वयं नहीं वर्तता ! उसकी मौजूदगी ही काफी
है. जो इस मौलिक तत्व को समझ लेता है वह कर्तापन के भाव से मुक्त होकर जीता है.
प्रकृति बड़ी शांति से अपना काम करती है यह जानकर हमारी पकड़ छूट जाती है.
He who knows did not speak and who speaks did not know-lao-tzu
ReplyDeleteप्रकृति बड़ी शांति से अपना काम करती है यह जानकर हमारी पकड़ छूट जाती है..satya vachan
स्वागत व आभार सतपाल जी
Deleteथोड़ा कठिन है प्रकृति और परमात्मा में भेद कर पाना। उनके लिए तो और भी कठिन जो परमात्मा को जीव रूप में ही पूजते चले आए। परमात्मा प्रकृति से भिन्न कैसे है!
ReplyDeleteस्वागत व आभार देवेन्द्र जी..परमात्मा अपरिवर्तनशील है, प्रकृति पल-पल बदल रही है, परमात्मा चेतन है, प्रकृति जड़ है, हमारा शरीर, मन बुद्धि आदि सभी बदल रहे हैं पर भीतर देखने वाला साक्षी आत्मा जस का तस है, ध्यान में गहरे गये बिना इसकी अनुभूति नहीं होती.
Deleteहम तो जड़ और चेतन सम्पूर्ण को प्रकृति मानते/समझते आए हैं। जड़ में भी और चेतन में भी परमात्मा है, ऐसा मानते आए हैं। कण-कण शंकर की गूँज सुनते आए हैं। अब जो आप समझा रही है---परमात्मा प्रकृति के साथ एक भी है और भिन्न भी. सारी प्रकृति वर्तती है उसकी उपस्थिति में ही, पर परमात्मा स्वयं नहीं वर्तता ! ---आनंद दायक है।
Deleteजड़ और चेतन कुछ ऐसे आपस में मिला है जैसे दूध में पानी ,दोनों को अलग-अलग देखना असंभव मालुम होता है । परा और अपरा का यही भेद गीता में विस्तार से समझाया गया है॥
Deleteजड़ और चेतन का भेद समझे बिना अखंड आनन्द की अनुभूति नहीं हो सकती...साधना का यही तो लक्ष्य है, जैसे सूर्य स्वयं कुछ नहीं करता पर उसके होने मात्र से ही पक्षी गाते हैं, पौधे अपना भोजन बनाते हैं, मानव जीवित हैं..वैसे ही चेतन सत्ता के होने मात्र से मन, बुद्धि, देह आदि अपना काम करते हैं..और ख़ुशी की बात यह है कि हम चेतन हैं जड़ नहीं..
ReplyDeleteआभार..
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