सितम्बर २००९
कर्म जब सहज
होता है तो बांधता नहीं है, प्रतिकर्म ही बांधता है. अकर्म मुक्त करता है. अकर्मण्य
होना अकर्म नहीं है, वह तो जड़ता है. चैतन्य जिसके भीतर जग गया है, वह जड़ नहीं रह
सकता लेकिन उसके कर्म सहज हैं. जो हो जाये या जो आवश्यक हो उतना वह करता है. उससे
सहज ही बड़े कार्य भी हो सकते हैं. क्योंकि कर्ताभाव से वह मुक्त है, उन कर्मों का
कोई बोझ उसके ऊपर नहीं होता. यही अकर्म है.
वाह!
ReplyDeleteस्वागत व आभार देवेन्द्र जी !
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