जनवरी २०१०
अभ्यास और
वैराग्य ये दो पंख हैं, जिनके सहारे साधक अध्यात्म के आकाश में उड़ता है. अभ्यास
समय सापेक्ष है पर वैराग्य समय सापेक्ष नहीं है. परम को प्रेम करें तो संसार से
वैराग्य हो जाता है. मन ही तो संसार है, जब मन स्थिर हो जाता है तो वह ज्योति
स्तम्भ बन जाता है, तब शरीर हल्का हो जाता है. मस्ती में परम वैराग्य है. वैराग्य
से समाधि का अनुभव होता है, समाधि से प्रज्ञा पुष्ट होती है. पूर्णता का अनुभव
होता है.
sach kaha aapne..
ReplyDeleteस्वागत व आभार उपासना जी
Deleteसत्य वचन।
ReplyDeleteमन भी मौजी है कभी प्रयास से भी स्थिर नहीं होता और कभी -कभी अपने आप ही स्थिर हो जाता है॥
जो तित भावे सो भली..
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