मई २००९
मंजिल पर
पहुंच सकें इसलिए वाहन मिला है, जीवन की लालसा हमें इस वाहन में बैठे रहने पर विवश
करती है. जिसे मंजिल का पता चल गया है उसे मृत्यु से भय नहीं लगता, असली जीवन इसके
बाद ही आरम्भ होता है. मानव इस सत्य से अनभिज्ञ रहकर ही सारा जीवन गुजार देता है.
मृत्यु उसे डराती है और वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है. अविद्या, अज्ञान और
अशिक्षा सबसे बड़े रोग हैं, स्कूली शिक्षा नहीं बल्कि जीवन की शिक्षा जो अध्यात्म
देता है. लेकिन हम गुरू द्वार तक पहुंच ही नहीं पाते परमात्मा जिस शांति का घर है
गुरू उसका द्वार है, लेकिन उस शांति का अनुभव विरले ही कर पाते हैं.
गुरू मंज़िल भी है और रास्ता भी ,शांति का घर भी है और घर का द्वार भी। गुरू ईश कृपा से मिलते है और गुरू कृपा से ईश॥
ReplyDeleteशांति का अनुभव विरले ही कर पाते हैं.-सत्य वचन॥
ज्ञान मूलं गुरोर्मूर्तिः पूजा मूलं गुरोर्पदम् ।
ReplyDeleteमंत्र मूलं गुरोर्वाक्यं मोक्ष मूलम् गुरोर्कृपा ॥
सही कहा है आपने, स्वागत व आभार सतपाल जी
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