फरवरी २०१०
हमारे और
परमात्मा के मध्य मल, विक्षेप और आवरण तीन बाधाएं हैं. संचित पाप तथा शरीर के
विकार ही मल हैं. मन की चंचलता व दुर्गुण ही विक्षेप हैं तथा मोह व अज्ञान आवरण हैं. ये सभी दूर हो जाएँ
तो परमात्मा हमारे सम्मुख ही है. हमारी प्राण शक्ति जितनी अधिक होगी भीतर उत्साह
रहेगा, समाधान रहेगा. प्राण शक्ति घटते ही रोग भी घेर लेता है तथा मन भी संदेहों
से भर जाता है. प्राणायाम तथा ध्यान मल व विक्षेप को दूर करते हैं और समाधि आवरण
को भी हटा देती है. समाधि का अनुभव होते ही आस्था दृढ़ हो जाती है और तब परमात्मा
पराया नहीं रहता. भीतर कोई हलचल नहीं, कोई उद्वेग नहीं एक सुखदायी मौन छा जाता है जिसकी
छाया में विश्राम पाकर मन तृप्त हो जाता है.
परम सत्य। सुन्दर विचार।
ReplyDeleteस्वागत व आभार विकेश जी..
ReplyDelete