अगस्त २००९
हमारे जीवन
में हजारों, लाखों, करोड़ों, अरबों या कहें कि अनंत पल खुशियों के आते हैं, बल्कि
कहें कि हमारा जीवन सुख व आनंद की एक अनवरत श्रंखला है, अनगिनत जन्मों को जोड़कर
देखें तो न जाने किस अतीत के काल से हम बने हुए हैं. परमात्मा की भांति हम भी
अनादि हैं, उसकी भांति हम साक्षी हैं, कुछ न करते हुए भी सबका आनंद लेने वाले, हर
श्वास एक आनंद की लहर का खबर देती है. जो स्वयं ही आनंद है उसे भी अपने आनंद का
स्वाद लेने के लिए देह में आना पड़ता है. परमात्मा को मायाविशिष्ट चेतना में आकर
लीला का आनंद लेना पड़ता है तो जीव को स्वप्न विशिष्ट चेतना में ! हम स्वप्न ही तो
देख रहे हैं, एक लम्बा स्वप्न, जिसमें हमने एक नया पात्र धरा है, शरीर मन व बुद्धि
का एक नया संयोग खड़ा किया है, स्वप्न से जागकर ही पता चलता है कि इसमें प्रतीत
होने वाले सुख-दुःख मिथ्या थे, वैसे ही मृत्यु के वक्त पता चलता है, सब कुछ छूट
रहा है, यह एक स्वप्न का अंत हो रहा है. हमारा ध्यान यदि मृत्यु से पूर्व इस ओर
चला आये तो जीवन एक उत्सव ही प्रतीत होता है.
मृत्यु से पूर्व मरने की कला अगर आ आ जाये तो जीते-जी इन्सान देह मुक्त हो जाये॥
ReplyDeleteसुंदर वचन॥
बिलकुल सही है..स्वागत व आभार सतपाल जी..
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