सितम्बर २००९
ऐसा संत
जिसे न कुछ
पाने को शेष रह गया हो न कुछ करना ही, वही अहैतुकी कृपा या सेवा कर सकता है. हम जो
कुछ करते हैं वह आनंद के लिए, जिसे वह मिल गया हो अब उसके लिए कुछ पाना बाकी नहीं
रहता ! प्रतिपल हमारा मन आनंद की खोज में लगा रहता है, ऐसा आनंद जो अनंत राशि का
हो तथा जो कभी छिने न, जिन्हें वह मिल गया, उन्हें कुछ करने को शेष रहता नहीं,
लेकिन फिर भी वे करते हैं, क्योंकि वे अन्यों को आनंद देना चाहते हैं. वे केवल
कृपा करते हैं, अकारण हितैषी होते हैं, सुहृद होते हैं !
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