अप्रैल २००९
दुनिया का कोई
ऐसा सुख नहीं है जो अपने पीछे दुःख को न छिपाए हो. परमात्मा का सुख ही ऐसा है जो
विपरीत से जुड़ा नहीं है. ज्ञान है तो परमात्मा है. ज्ञान के कारण कोई परमात्मा के
मार्ग पर नहीं चलता, दुःख के कारण चलता है. दुखों में सबसे बड़ा दुःख तो मरण का है.
मरण को याद रखके ही कोई परमात्मा को याद करता है. बेअंत की याद उसी को आएगी जो
अपने अंत को याद करता है. अकाल को वही पा सकता है जो काल को याद करता है. तन का घट
मिट्टी का है, प्रकृति एक दिन उसे अपने तत्वों से जोड़ देती है. मन का घट परमात्मा
का है. मन ज्योति स्वरूप है. तन को प्रकृति अपने घर पहुंचा देती है, मन को अपने घर
खुद जाना है. संसार हर समय याद आता है पर हजार प्रयत्न करने पर भी परमात्मा याद
नहीं आता. जिसे याद आता है, वह महा आनंद को पाता है, उसे भूल जाना ही दुःख है.
वह परमात्मा ही हमारा एक - मात्र आधार है । उसका सुमिरन ही हमें गंतव्य तक पहुँचा सकता है ।
ReplyDeleteस्वागत व आभार शकुंतला जी
Deleteमन से मुक्ति ही दुख से मुक्ति है लेकिन ये मार्ग कठिन बहुत है। आनंद किसी साधना का फल नहीं अपितु ईश्वर कृपा है। मन वास्तव में आत्मा की ही परछाई है॥
ReplyDeleteआपकी बात सही है, कृपा पाने के लिए कृपा पात्र तो बनना पड़ेगा, साधना उतना ही करती है.
Delete