Sunday, February 11, 2018

मर्म धर्म का जो भी जाने


१२ फरवरी २०१८ 
जीवन की धन्यता किसमें है ? सम्भवतः जीवन के मर्म को जानकर उसके अनुसार जीने में ही. जीवन का मर्म है धर्म.. हिन्दू, मुस्लिम वाला नहीं, किन्तु वह धर्म, जिस पर जीवन टिका है. शास्त्र में धर्म की कितनी ही व्याख्याएँ की गयी हैं, जिनका सार है सत्य और अहिंसा. सत्य और अहिंसा को यदि एक शब्द में कहना हो तो प्रेम. अर्थात जीवन का मर्म हुआ प्रेम. पहले इस प्रेम को अपने भीतर अनुभव करना है और फिर बाहर इसे बहने देना है, अनायास ही. ओढ़ा हुआ शिष्टाचार पृथक बात है, समाज में व्यवहार के लिए वह आवश्यक है, किन्तु एक साधक को तो अपने भीतर प्रेम के शुद्धतम रूप को अनुभव करना है. कबीर ने कहा है, ढाई आखर प्रेम का..पढ़े सो पंडित होए. ऐसे मनुष्यों का ही जीवन धन्य है जिनके भीतर से प्रेम की अजस्र धारा सहज ही बहती है, वे ही इस धरा के लिए महान बन जाते हैं.

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