१५ फरवरी २०१८
एक ही सत्ता से यह सारा जगत बना है. एक ही चैतन्य विभिन्न जीवों
के रूप में प्रकट हो रहा है, किन्तु वह सदा उनसे पृथक है. परमात्मा हर क्षण स्वयं
को ही भिन्न-भिन्न रूपों में प्रकट करके आनंदित हो रहा है. आत्मा को उसने अपने
जैसा बनाया है, अर्थात आत्मा के रूप में हम प्रतिक्षण अपने भीतर एक सृष्टि का
निर्माण कर रहे हैं. सुख-दुःख आदि आते हैं, आते रहेंगे, किन्तु उनसे प्रभावित होना
या न होना हमारे ऊपर निर्भर करता है. जब हम स्वयं को एकरस शुद्ध चेतना के रूप में
स्वीकार कर लेते हैं, तो जगत में कुछ भी हमें विचलित नहीं कर सकता. जगत से व्यवहार
चलेगा पर उसका प्रभाव मन पर नहीं होगा. अनुभव होगा पर कोई अनुभव कर्ता नहीं होगा,
क्योंकि सारे अनुभव प्रकृति में हो रहे हैं, आत्मा उनसे अलिप्त है. वह मात्र द्रष्टा
और ज्ञाता है. देह भाव से मुक्ति ही सच्ची मुक्ति है.
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