Friday, February 23, 2018

भीतर बहता सुख का सोता

२३ फरवरी २०१८ 
यदि कोई भी कार्य करने से पहले हम स्वयं से यह प्रश्न करें कि इस कार्य से हम क्या प्राप्त करना चाहते हैं, तो हर उत्तर भिन्न हो सकता है जैसे धन, यश, पद, सम्मान आदि. किन्तु हर उत्तर अंततः एक ही दिशा की ओर ले जायेगा, और वह है इनके द्वारा आनंद प्राप्ति. अंतर है तो इतना कि कोई कार्य के सफल होने के बाद ख़ुशी मनाता है तो कोई कार्य को संपादित करते समय ही. किसी भी कर्म को हम किस भावना से करते हैं, उसमें हमारा कितना श्रम अथवा ऊर्जा लगी है, परिणाम इस पर निर्भर करता है. उत्साह और शुभ भावना से किया गया कर्म अपने आप में ही आनंदित करने वाला होता है. हमारी अंतर्चेतना जिन तत्वों से बनी है उनमें आनंद प्रमुख है, इसका अर्थ हुआ कि आनंद ही वह प्रेरक तत्व है जो हमें सद्कार्य में लगाता है. जैसे धन से धन कमाया जाता है वैसे ही मुदिता से मुदिता का संवर्धन होता है. यदि अध्यापक ख़ुशी-ख़ुशी पढ़ाये और किसान प्रसन्नता पूर्वक खेत में बीजारोपण करे तो स्कूलों और खेतों में वातावरण कितना सुखद होगा. 



5 comments:

  1. बहुत ही उम्दा तरीके से लेख प्रस्तुत किया. Motivational लेख
    Inspirational information in hindi

    ReplyDelete
  2. स्वागत व आभार साधना जी !

    ReplyDelete
  3. आनंद की प्राप्ति ही चरम सुख है ...

    ReplyDelete
  4. आनंद होता है अंतर्मन में ही ...

    ReplyDelete