Tuesday, February 6, 2018

नाम-रूप से पार जो देखे

६ फरवरी २०१८ 
प्रतिपल इस जगत में कितना कुछ घट रहा है, सृष्टि के इस अनंत पटल पर न जाने कब से असंख्य खेल खेले जा चुके हैं, जा रहे हैं और खेले जायेंगे. आश्चर्य की बात यह है कि उस पटल पर उनका चिह्न भी शेष नहीं रहता. जैसे स्वप्न में हम किले बनाते हैं, विशाल पर्वत रच लेते हैं और जगने पर उनका नामोनिशान नहीं मिलता, वैसे ही यह जगत प्रतिपल ‘हाँ’ से ‘नहीं’ हुआ जा रहा है. जो इसे ही वास्तविक मान लेते हैं वह इस नाम-रूप के जगत के पीछे छिपे अव्यक्त कारण की खोज नहीं करते. जैसे सागर में उठी लहरें नाशवान हैं, वे सागर का ही एक रूप हैं और लहर नाम से जानी जाती हैं. लहरों के नाश होने पर सागर का नाश नहीं होता. सागर भी जल का एक रूप है और सागर नाम से जाना जाता है, यदि कभी सागर भी सूख जाये तो जल का नाश नहीं होता. इसी तरह मन भी आत्मा के सागर में उठी लहर ही है, और देह मन के सागर में उठी लहर. देह व मन के नाश हो जाने पर आत्मा का नाश नहीं होता.     

2 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन कवि प्रदीप और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. बहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !

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