१० फरवरी २०१८
स्वप्न में देखे हुए दृश्य जैसे हमें जागने पर प्रभावित नहीं
करते, जागृत में हुए अनुभव भी कुछ ऐसे ही हैं. बचपन में जिन वस्तुओं के बिना हम रह
नहीं पाते थे, वे अब व्यर्थ हो गयी हैं. कल जो मित्र अपने निकट थे, आज वह दूर हैं,
और उनकी याद भी नहीं आती. जो कुछ भी मन के द्वारा अनुभव किया जा सकता है, वह सभी
बाहर है, उसके बिना भी हमारा अस्तित्त्व बना रह सकता है, बना रहा है. क्यों न हम
उसे तलाशें जो हमसे अलग किया ही नहीं जा सकता, और वह तत्व है हम स्वयं...हमारा
होना किसी बाहरी संयोग पर निर्भर नहीं है. ध्यान ही ऐसी प्रक्रिया है जो हमें हमारे
मूल तक ले जाती है. अपने मूल से जुड़कर ही
कोई इस जगत को अपना क्रीड़ा स्थल बना सकता है, जहाँ बिताया हर क्षण आनंदित करने
वाला है.
निश्चितत: ...ध्यान ही ऐसी प्रक्रिया है जो हमें हमारे मूल तक ले जाती है...क्यों न हम उसे तलाशें जो हमसे अलग किया ही नहीं जा सकता...मन भर आया इस पंक्ति को पढ़कर...
ReplyDeleteस्वागत व आभार अलकनंदा जी !
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