३ फरवरी २०१८
सत्य के प्रति आग्रह जब मानव को देव बना देता है, महात्मा बना
देता है, असत्य का आश्रय लेने वाला कहाँ पहुँचेगा इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती
है. अल्प की कामना करने से विराट कैसे मिल सकता है, उसके लिए तो विराट की ही कामना
करनी होगी. इन्द्रियों व मन से मिलने वाला हर सुख अल्प है, मन के पार जहाँ द्वंद्व
नहीं है, वहाँ आत्मा का सुख है, जो कभी खत्म नहीं होता. संत के मुख से यह बात
सुनकर भी हमें भरोसा नहीं होता, हम छोटे-छोटे सुखों को ही अपनी झोली में भर कर
प्रसन्न होते रहते हैं. ओस की बूंदों की तरह ये सारे सुख शीघ्र समाप्त हो जाते
हैं, फिर खाली झोली लिए हम मायूस हो जाते हैं. क्यों न एक बार उस परमसुख की कामना
करें जिसके गीत गाते हुए कृष्ण थकते नहीं.
स्वागत व आभार विनय जी !
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