२१ फरवरी २०१८
शास्त्रों में ईश्वर प्राप्ति के मुख्यतः
तीन मार्ग कहे गये हैं. पहला है ज्ञान मार्ग, दूसरा कर्म अथवा योग मार्ग और तीसरा भक्ति
मार्ग. ज्ञान मार्ग में साधक को अपनी समझ बढ़ानी है. बुद्धि को सूक्ष्म करना है,
तथा अपने भीतर उस अपरिवर्तनीय तत्व को देखना है जो सदा एकरस है. स्वयं को देह भाव
से मुक्त करके आत्मभाव में स्थित करना है. कर्म मार्ग में अपने कर्मों को निष्काम
भाव से करना है अर्थात कर्मों के फलों का त्याग करना है. छोटे-बड़े सभी कर्मों को केवल
परमात्मा के लिए करना है. ऐसा करते-करते मन शुद्ध हो जाता है और भीतर एक अपूर्व
शांति का अनुभव होता है जो परमात्मा से ही आई है. भक्तिमार्ग में अपने कुशल-क्षेम
का पूरा भार परमात्मा पर छोड़ देना है और जगत में उसी के दर्शन करने हैं. यह मार्ग
आरम्भ से ही रसपूर्ण है, क्योंकि यहाँ परमात्मा है, इसमें कोई संशय नहीं है, उसकी
आराधना करने में ही भक्त को आनंद का अनुभव होता है. अंततः तीनों मार्ग एक में
समाहित हो जाते हैं और स्वयं के भीतर उस परम तत्व से एकत्व का अनुभव होता है.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबहुत बढिया लेख मगर काफी संक्षिप्त है
ReplyDeleteस्वागत व आभार यश जी. बुद्धिमान को इशारा काफी है, एक मार्ग को पकड़ कर उस पर चलना है मंजिल अपने आप मिल जाएगी.
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