८ फरवरी २०१८
एक कहावत है, पूत के पाँव पालने में ही देखे जाते हैं, अर्थात
कोई बच्चा बड़ा होकर कैसा बनने वाला है, उसकी झलक बचपन में ही मिल जाती है. इसी
कहावत को यदि थोड़ा आगे बढ़ाया जाये तो ऐसा भी कह सकते हैं कि किसी की युवावस्था
देखकर उसकी वृद्धावस्था का अनुमान लगाया जा सकता है. यदि कोई अनुशासित जीवन जीता
रहा है तो उसका बुढ़ापा भी अनुशासित ही होगा. इसी तरह कोई वृद्ध यदि संतुष्ट है और
जीवन के प्रति आशावान है तो उसका नया रूप यानि अगला जीवन कैसा होगा, यह भी जाना जा
सकता है. अक्सर हम वृद्धों को अपने बीते हुए दिनों की बातें करते देखते हैं, लेकिन
जो बीत गया उसे दोहराना पानी पर लिखने जैसा है, जिसका कोई अर्थ नहीं. यदि वृद्ध
अपने अगले बचपन के विषय में सोचे और उसकी तैयारी करे तो जीवन कितना सुंदर हो सकता
है. बुढ़ापा बचपन की पूर्वावस्था ही तो है, बल्कि वृद्धावस्था में ही इसके लक्षण
आरम्भ हो जाते हैं. पोपला मुख, बात-बात पर तुनकना और शारीरिक असमर्थता बच्चों में
होती है और बूढों में भी. सन्यास आश्रम में गया वृद्ध बालवत् ही होता है, तभी वह
सबका प्रिय हो जाता है.
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ८ फरवरी, प्रपोज़ डे और शूर्पणखा “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !
Deleteभूत में जीना या भविष्य का चिंतन एक समान हैं ! सच तो वर्तमान ही है
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