जनवरी २००४
राधा कृष्ण की आह्लादिनी शक्ति है, महामाया और योगमाया उसकी अपरा और परा शक्तियाँ
हैं. कृष्ण सोलह कलाओं से पूर्ण तथा षट्ऐश्वर्य
सम्पन्न हैं, वह अपने एक अंश से इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड को धारण किये हुए हैं, जीव
उनकी पराशक्ति का अंश है पर माया ने उसे मोहित कर लिया है और वह स्वयं को
सर्वेसर्वा मानने लगता है, यही अहंकार उसके जीवन में दुखों को लाता है. यदि वह
अपने सत्य स्वरूप को जान ले तो जीवन कितना सहज और आनन्दपूर्ण हो सकता है. वही दिन
सार्थक होगा जब कृष्ण का अनुभव हमारा अपना अनुभव होगा, लेकिन उस परम दिन के लिए
सत्प्रयास करते हुए ये दिन भी क्या कम सार्थक हैं. यात्रा का भी अपना एक आनंद है,
जितना मंजिल का. मार्ग में आने वाले मनोरम दृश्य मन की उस अवस्था की तरह हैं जो
हमें साधना का दौरान प्राप्त होती हैं. यह निर्विचार, निर्विकल्प अवस्था कितनी
शांत अवस्था है, जब कोई इच्छा नहीं, बस एक होने मात्र का अहसास ही रहता है. फिर यह
होता है की एक मुस्कान न जाने कहाँ से आ जाती है, भीतर जो आह्लाद सा जगता है यही
तो राधा है अर्थात कृष्ण के प्रति प्रेम जो हमें सहज बनाता है.
राधा कृष्ण की आह्लादिनी शक्ति है,इसीलिये कृष्ण के प्रति प्रेम जो हमें सहज बनाता है.,,,,
ReplyDeleteपोस्ट पर आइये अनीता जी स्वागत है,,,,,राधे राधे...
recent post: मातृभूमि,
सत्य वचन..राधे राधे
ReplyDeleteधीरेन्द्र जी व कैलाश जी स्वागत व आभार !
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