Thursday, January 31, 2013

सबमें एक एक में सब हैं



जो कर्म में अकर्म को देखता है और अकर्म में कर्म को देखता है, वही कर्मयोगी है. जो सबमें आत्मा को देखता है और आत्मा में सबको देखता है. वास्तव में वही देखता है. भगवद गीता के ये दो श्लोक कितने अद्भुत हैं. हम जगत में जितने भी कर्म करें उनका कर्ता स्वयं को न मानें, सभी कर्म प्रकृति के गुणों के अनुसार हमसे हो रहे हैं और जब हम ध्यान में हों अर्थात कुछ भी न कर रहे हों तो भी हमसे बहुत कुछ हो रहा होता है. जो चेतना एक के भीतर है वही सबके भीतर है तथा सब कुछ उसी के भीतर है.   

9 comments:

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    1. रश्मि जी, सब एक हैं मान कर चलना होगा..गुरूजी कहते हैं कुछ जान के चलो, कुछ मान के चलो, प्रेम से सबको गले लगाते चलो..आभार !

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  2. जो चेतना एक के भीतर है वही सबके भीतर है तथा सब कुछ उसी के भीतर है.
    बहुत सही कहा आपने

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  3. करन करावन वह मैं तो निमित्त मात्र .आत्मा आत्मा भाई भाई .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .

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    1. वीरू भाई, अनुभव के स्तर पर इसे जानना ही अध्यात्म है..आभार!

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  4. सारा ज्ञान गीता के श्लोक के भीतर है,बस उसे ग्रहण कर ले,,

    RECENT POST शहीदों की याद में,

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  5. इमरान, सदा जी, धीरेन्द्र जी, मधु जी अप सभी का स्वागत व आभार !

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