फरवरी २००४
हममें से हर कोई प्रेम का आदान-प्रदान करना चाहता है, प्रेम ही जीवन का आधार है, पर
जब हमारा प्रेम जगत पर आश्रित होता है, तो वह मोह कहलाता है और दुखदायी होता है. क्योंकि
जगत बदलने वाला है, वह अनुकूल भी हो सकता है और प्रतिकूल भी. प्रेम का प्रतिदान
मिल भी सकता है और उसका अपमान भी हो सकता है. वह प्रेम जब भक्ति बन जाता है तो
हजार गुणा होकर हमें वापस मिलता है. ईश्वर उसे तत्क्षण स्वीकारते हैं और हमें भी
अपना प्रेम देते हैं. संत हर क्षण उस प्रेम का पान करते रहते हैं. साधना का ध्येय
उस परम प्रेम को पाना ही तो है, जहाँ उसके प्रति भक्ति की अखंड धारा प्रतिपल हमारे
भीतर बहती रहे. हम क्षण-क्षण उस प्रसाद को पाते रहें और जगत में लुटाते रहें, और
वह क्षमता हममें से हर एक के पास है, उसकी चाबी हमने खो दी है जो हम स्वयं ही ढूँढ
सकते हैं. समाज में यदि सच्चा परिवर्तन लाना है तो हर परिवार में ऐसे दृढ भक्त हों
जो ज्ञान और प्रेम के द्वारा अपने आस-पास के वातावरण को शांत बनाएँ. जहां ज्ञान
होता है सुख वहीं होता है. सुख की कामना की तो दुःख मिलने ही वाला है. ज्ञान की
कामना की तो सुख बरसने लगता है.
प्रेम ही जीवन का आधार
ReplyDeleteनिःशब्द एक शाश्वत सत्य
रमाकांत जी, स्वागत व आभार !
Deleteजैसे कि शून्य क्या है ,कुछ भी नही ,पर जिस अंक में लगा दो उसकी कीमत बढ़ जाती है ,एक की दस हो जाती है ,दो शून्य लगा दें तो सौ हो जाती है जितने ज्यादा शून्य लगाएंगे कीमत बढ़ती ही जायेगी .उसी तरह भक्ति है अपनेआप में तो कुछ भी नही .अपने इष्टदेव का नाम जपें ,चाहे राम हो, कृष्ण हो . आखिर क्या है इसकी वैल्यू.पर जब हम किसी भी काम को भक्ति से जोड़ देते हैं तो उसकी कीमत उसी हिसाब से बढ़ जाती है
ReplyDeleteदीदी, भक्ति के महत्व की बहुत सुंदर व्याख्या..आभार!
Deleteजहां ज्ञान होता है सुख वहीं होता है.,,,,,
ReplyDeleterecent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
धीरेन्द्र जी, स्वागत है
Deleteसार्थक सकारात्मक आलेख ...
ReplyDeleteअनुपमा जी, बहुत दिनों बाद आपको देखकर हर्ष हुआ, आभार !
Deleteसहमत...सार्थक आलेख!!
ReplyDeleteसमीर जी, स्वागत व आभार !
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