Thursday, January 3, 2013

सहज हुए सब होता जाये


“मैंने यह किया, मुझे यह करना है और मैं यह करूँगा,” ऐसे संकल्प करने वाला मन सदा उलझा ही रहता है. वास्तव में जो हमें करना है वह सहज है, वह सप्रयास नहीं होता अपने आप होता है जैसे फूल का खिलना, सहज प्राप्त कर्त्तव्यों के पालन में, अपनी रूचि, योग्यता आदि के अनुसार करने वाले कार्यों में हमें कोई प्रयास नहीं करना पड़ता, ऐसे कर्म हमें बांधते नहीं और हम त्रिगुणात्मक प्रकृति से परे हो जाते हैं, मुक्त हो जाते हैं. मन तब भीतर की ओर जाने का सामर्थ्य पाता है और वहाँ उसे परम विश्राम का अनुभव होता है..निस्सीम, अनंत आनंद का अनुभव..जो परमेश्वर का अंश है. यह सकल सृष्टि उस परम के एक अंश मात्र में स्थित है और वह हमसे अहैतुक प्रेम करता है, उसका प्रेम वैसा ही स्वाभाविक है जैसे हमारा अपनी सन्तान के प्रति सहज ही होता है. ईश्वरीय प्रेम हमारे प्रेम से अनंत गुना अधिक है. उसका स्मरण यदि बना रहे तो हम पूर्ण तृप्ति का अनुभव करते हैं. उसके प्रेम का अभाव ही हमें दुखी करता है.

6 comments:

  1. जय श्री कृष्णा....प्रेम का अभाव ही हमें दुखी करता है।

    प्रेम-प्रेम सब कोइ कहैं, प्रेम न चीन्है कोय।
    जा मारग साहिब मिलै, प्रेम कहावै सोय॥

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    1. बहुत सुंदर दोहा..आभार !

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  2. सहज ही साधना है .....बहुत सुन्दर।

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    1. इमरान, सुस्वागत !

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  3. लौकिक और अलौकिक दोनों संसारों की बेहतरीन सीख मिलती है आपके ब्लॉग पर .आभार .

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  4. बिलकुल सही बात कही आपने :-)
    ~सादर!!!

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