Monday, January 7, 2013

कुछ नहीं या सब कुछ हैं हम


जनवरी २००४ 
किसी कवि ने कहा है - पथ सोचे आमि देव, रथ सोचे आमि देव, मूर्ति सोचे आमि देव, ऊपर हँसे अन्तर्यामी..हमारा कर्ता भाव क्या कुछ ऐसा ही नहीं है, शरीर सोचता है बड़ा श्रम किया, मन सोचता है बहुत चिंतन किया बुद्धि स्वयं को क्या नहीं माने बैठी है...पर भीतर बैठा वह आत्मदेव यदि न हो तो..जैसे सूर्य कुछ नहीं करता पर सृष्टि मात्र उसके होने से ही तो है. करने वाले सब प्रकृति का अंश हैं, जिसके कारण सब होता है वह परमात्मा है, तो हम क्या हैं ? कुछ हमारा भी हिस्सा है कि नहीं...जब मुनि मौन में यह पूछता है तो पाता है प्रकृति के साथ उसका मेल नहीं बैठता...जो खुद पल-पल बदल रही है वह उसे कैसे धारण करेगी, परमात्मा की ओर निहारता है तो पाता है कि वह  बचा ही नहीं ..यही तो रहस्य है जिसे भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं. 

6 comments:

  1. नवीन चिंतन ... सार्थक चिंतन ...

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    1. आभार ! दिगम्बर जी

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  2. जय श्री कृष्णा....

    सुनहु तात माया कृत गुन अरु दोष अनेक।
    गुन यह उभय न देखिहिं देखि सो अबिबेक॥

    माया से रचे हुए संसार में अनेक गुण और दोष हैं इनकी कोई वास्तविक सत्ता नहीं है। विवेक इसी में है कि दोनों ही न देखे जाएँ, इन्हें देखना ही अविवेक है।

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    1. सही कहा है आपने..दोनों से परे होना ही मुक्त करेगा.

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