जनवरी २००४
हमारे जीवन में अनेक बार हम ईश्वर की कृपा का अनुभव करते हैं, सागर कह दे कि तरंग
उसकी नहीं है, नहीं कह सकता, वैसे ही चेतना परमात्मा की तरंग है, वही कर्म करने की
प्रवृत्ति तथा प्रेरणा देता है. उत्साह और प्रेम भी वही है. हम यदि अपने जीवन का
केन्द्र उसे बना लें तो यशोदा की तरह वह कभी हमारे हृदय से दूर नहीं हो सकता, एक
बार जिसके हृदय को अपना घर बना लेता है कभी छोड़ता नहीं है, उसके प्रेम में मुग्ध
हुआ मन उसी का होकर रह जाता है, उसको फिर उसी की निकटता में चैन मिलता है.
sundar abhivyakti फिर उसी की निकटता में चैन मिलता है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteअनुपम भाव ...
ReplyDeleteश्याम रंग में रंगी चुनरिया अब रंग दूजो भावे न .,जिन नैनन में श्याम बसे हैं और दूसरो आवे न .शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .
ReplyDeleteआपके भाव बहुत ही सुन्दर हैं ..
ReplyDeleteमधु जी, इमरान, सदा जी, वीरू भाई व रितु जी आप सभी का सुस्वागत और आभार !
ReplyDelete