जनवरी २००४
परमात्मा सदा हमारे साथ है, वह रहस्यमय भी है और स्वयं को प्रकट भी कर देता है, वह
हमारी आत्मा का चिर सखा है, उसने हमें अनंत-अनंत शक्तियाँ दी हैं, हम उनका उपयोग
करें या नहीं, कैसे करें, इसका निर्णय उसने हम पर छोड़ दिया है, लेकिन उसकी शरण में
जाने पर वह हमें निर्देशित भी करता है और वह सदा हमारे हित के लिए ही सुख-दुःख भेजता
है, बल्कि हमारे जीवन में घटने वाली घटनाएँ उस तक ले जाने में सहायक ही होती हैं,
साधक को उसके योग्य बनना है, उससे प्रेम करने के योग्य उससे प्रेम पाने के
योग्य...उसे जो भी करना है सब उसके लिए ही है.
वाह !यह विचार कर्ता भाव से विमुक्त करता है .
ReplyDelete..और जो कर्ताभाव से मुक्त है वही मुक्त है..आभार !
Deleteबहुत सच कहा है...आभार.
ReplyDeleteकैलाश जी, स्वागत व आभार !
Deleteकाश! हम कभी विचलित न होते
ReplyDeleteउस परम पिता परमात्मा को क्षण
भर के लिए न भूलते ....किन्तु
सृष्टि में घटित होने वाली सभी
घटनाएं उनके द्वारा रचित माया
ही तो है .....बहुत ही सुन्दर ज्ञान
की बात लिखी गई है ...आभार
"तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा"
"जय श्री कृष्ण"
सूर्यकान्त जी, जय श्री कृष्ण !
Deleteमेरा मुझमे कुछ नहीं ........
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा....
ReplyDeleteमेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कुछ है सो तोर।
तेरा तुझकौं सौंपता, क्या लागै है मोर॥