जनवरी २००४
हमारे मन की वृत्तियाँ ही हमें ईश्वर से दूर रखती हैं, कभी स्मृतियों के बादल छा
जाते हैं, कुहासा हो जाता है, कभी प्रमाद, निद्रा, आलस्य हमें सजग नहीं होने देते.
कभी क्रोध, लोभ, ईर्ष्या आदि का धुआँ चिदाकाश को आवृत कर लेता है, तो परमात्मा रूपी
सूर्य दिखाई पड़े भी तो कैसे. वह तो सदा सर्वदा हमारे आगमन की प्रतीक्षा कर रहा है,
देर हमारी तरफ से है, वह तो आनंद में भर कर नृत्य करने लगता है जब कोई साधक मन से
मोह का पर्दा हटाकर उसे निहारने का प्रयास करता है, वह उसकी कुशल-क्षेम का भी जिम्मा उठाने को तैयार
है. उसकी कृपा का अनुभव होते ही मन स्थिर हो जाता है, जैसे लहरों में हिचकोले खाती
हुई नाव अचानक एक नियमित गति को पा ले. नए वर्ष में क्यों न हम यही संकल्प करें कि
जो ऊर्जा आजतक व्यर्थ ही इतर कामों में चली जाती थी, उसे भीतर प्रवेश करने में
लगाएंगे, अर्थात ध्यान को जीवन का अंग बनाएंगे. ध्यान पूजा की पराकाष्ठा है. ध्यान
में ही उसके होने का अनुभव साधक को पहली बार होता है. उसकी उपस्थिति कितनी मधुर,
प्रेरक और मोहक है. जीवन अमूल्य है, क्योंकि उसका एक-एक क्षण उस परमपिता का प्रसाद
है. हमारी एक-एक श्वास उसकी ऋणी है. इस सृष्टि के नियंता ने हमें इसका एक छोटा सा
पुर्जा बनाया है, हमें एक कार्य सौंपा है, देह, मन व बुद्धि का वरदान दिया है. वह
अकारण हितैषी हमारी आत्मा का प्रकाश बनकर सदा हमारे साथ है. वह हमें अपनी ओर
खींचता है, वही साधन भी है वही साध्य भी. वह जादूगर है, वह जो स्वयं को स्वयं ही जानता
है, वह जो प्रेम की ही भाषा समझता है, जो हमारे सम्मुख स्वयं को प्रकट करने में
देर भी नहीं करता, वही हमारा आराध्य है.
शत प्रतिशत सत्य।
ReplyDeleteजीवन अमूल्य है, क्योंकि उसका एक-एक क्षण उस परमपिता का प्रसाद है.
ReplyDeleteVERY NICE
सत्य वचन,प्रेरक प्रस्तुति,,,
ReplyDeleterecent post: किस्मत हिन्दुस्तान की,
जय श्री कृष्णा....जीवन अमूल्य है|
ReplyDeleteसांस सांस सिमरो गोविन्द,मन अंतर की उतरे चिंद।
इमरान, रमाकांत जी, धीरेन्द्र जी व रविकांत जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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