फरवरी २००४
हमारा जो कृत्य हमारे लिए या
दूसरों के लिए किसी दुःख का कारण बने वह पाप है और जो सुख दे वह पुण्य है. दुखों
से मुक्ति ही अध्यात्म का लक्ष्य है, इसके लिए पाप से बचना होगा अर्थात चित्त का
शोधन करना होगा, चित्त कब विक्षुब्ध होता है, क्यों होता है, हमारे कारण अन्यों का
चित्त तो विक्षुब्ध नहीं हो रहा इसका ध्यान रखना है. मन ही पुण्य शील है और मन ही
पाप करवाता है. जब हम असजग होते हैं तभी दुःख पैदा करते हैं. मन को गहराई से देखें
तो यह अमनी भाव में चला जाता है वहाँ न पुण्य है न पाप. तब मन संवेदनशील होता है,
जागरूक होता है, इस जगत की सच्चाइयों को भीतर से जान लेता है, अनुभव के द्वारा
पाया ज्ञान ही स्थायी होता है. तब सारे संशय छिन्न-भिन्न हो जाते हैं. अपने ही मन
के द्वारा बनाये गए कल्पना के जाल से मुक्ति का अनुभव होता है.
हमारा कृत्य जो दूसरों को सुख पदान करे,तभी खुद को सुख का अनुभव मिलता है,
ReplyDeleterecent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
मुक्ति बहुत कठिन लगती है और कई बार तो मुक्त होने की इच्छा भी नहीं होती, इस संसार को छोड़ने की इच्छा भी नहीं लेकिन अपने कार्यों से संतुष्ट भी नहीं, अजीब स्थिति है।
ReplyDeleteसुन्दर विचार .आभार .
ReplyDeleteआभार आपकी टिपण्णी का .
ReplyDeleteVirendra Sharma @Veerubhai1947
ReplyDeleteध्यान योग में छिपा है मनोरोगों का समाधान http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2013/01/blog-post_1333.html …
Expand Reply Delete Favorite More
19m Virendra Sharma @Veerubhai1947
ram ram bhai मुखपृष्ठ सोमवार, 28 जनवरी 2013 पांचहज़ार साला हमारी योग ध्यान और मननशीलता की परम्परा http://veerubhai1947.blogspot.in/
Expand
हमारा जो कृत्य हमारे लिए या दूसरों के लिए किसी दुःख का कारण बने वह पाप है और जो सुख दे वह पुण्य है. दुखों से मुक्ति ही अध्यात्म का लक्ष्य है,
ReplyDeleteसदैव की भांति यथार्थ को चित्रित करता
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 29/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है
ReplyDeleteजो कर्म करे दूसरों के लिए हितकारी हो,अहितकारी तो कभी भी न हो,धन्यबाद आपका।
ReplyDeleteजो कि केवल ध्यान से ही संभव है .
ReplyDeleteसही कहा है..
Deleteacchha margdarshan karta lekh.
ReplyDeleteaabhar.
धीरेन्द्र जी, वीरू भाई, रमाकांत जी, राजेन्द्र जी, राजेश जी व अमृता जी आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteशुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का
ReplyDelete