जनवरी २००५
कर्म हमें बंधन में डालते हैं, पर कर्म हम करते ही क्यों
हैं ? साधक तो इस बात के लिए सजग रहता है कि उसके नये कर्म न बनें, वह तो ध्यान के
द्वारा पुराने कर्मों को काट रहा है. मोह, स्वार्थ, स्वभाव तथा कर्त्तव्य चार
कारणों से हम कर्म करते हैं. प्रथम तीन हमें बांधते हैं, पर चौथा सहज भाव से किया
गया कर्म हमें बांधता नहीं, मोह अथवा स्वार्थ में पड़कर हम अकर्म कर डालते हैं. स्वभाव
वश कर्म करने से हानिकारक कर्म भी हो जाते हैं. कर्त्तव्य कर्म करने नहीं होते सहज
ही होते हैं, उनका होना ही उनकी शक्ति है, जब हमें कर्त्तव्य कर्मों का ज्ञान होगा
तब सप्रयत्न कुछ नहीं करना होगा, हमारा होना ही पर्याप्त होगा जैसे इस दुनिया के
सभी कार्य सहज रूप से अपने आप ही हो रहे हैं.
सच! अपने आप ही निर्वाहित होता है... प्रवाहित है इस संसार में सबकुछ!
ReplyDeleteअनुपमा जी, स्वागत व आभार !
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