“लोकोआनंदः समाधिसुखं” जगत का सारा सुख समाधि
के सुख का ही अंश है, जहाँ कहीं भी हमें सुख मिलता है, वह उसी समाधि के सुख की झलक
मात्र है, हमारा मन पल भर को भी जहाँ ठहर जाता है, अनंत का सुख बरसने लगता है,
समाधि सुख कहीं बाहर से लाना नहीं है, वह तो भीतर ही है, बस उसे जगने का अवसर देना
है. समाधि में बैठा व्यक्ति वातावरण को भी सुख से भर रहा होता है. वह जो स्वयं
तृप्त है वही दूसरों की प्यास बुझा सकता है. सद्गुरु की कृपा यदि किसी के जीवन में
घटित हो जाये तो एक क्रांति उसके जीवन में होनी निश्चित है. वह तब सीमाओं से परे
चले जाता है, वर्तमान को प्राप्त होता है, क्षुद्रता को त्याग देने से अनंत की
शक्तियाँ उसकी सहयोगी बन जाती हैं, वह परम में विहार करने लगता है.
सुंदर ...ज्ञानवर्धक ...!!
ReplyDeleteआभार अनीता जी ।
सही है
ReplyDeleteबढिया
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (11-08-2013) के चर्चा मंच 1334 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteसोमनाथ में भोले बाबा के दर्शन के समय मैं भी ऐसी ही अवस्था में आ गयी थी और सच में असीम सुख की अनुभूति हुई .......
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