जनवरी २००५
हमें चिंता से चिन्तन की ओर जाना है,
चिंता नश्वर की होती है, चिन्तन शाश्वत का होता है. अपने भीतर छिपे उस तत्व को
प्रकट करना है. देह जड़ है, मन, बुद्धि भी जड़ है जड़ का चिन्तन हमें जड़ बना देता है,
संवेदनशीलता खो जाती है, बुराई के प्रति हम आँख मूंद लेते हैं. चेतन का चिन्तन सदा
प्रकाश से भर देता है, आगे बढ़ने की एक ललक, एक प्यास, एक तड़प, एक अग्नि भीतर जलती
रहती है. उसी के प्रकाश से फिर जड़ भी दिव्यता को प्राप्त हो जाता है. मन भावों को
जन्म देता है, भीतर एक गीलापन उगता है, जो हमें अपने मूल स्वभाव की ओर ले जाता है.
चेतन का चिन्तन सदा प्रकाश से भर देता है,
ReplyDeleteRECENT POST : पाँच( दोहे )
आपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल मंगलवार २७ /८ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है।
ReplyDeleteआभार राजेश जी !
Deleteसत्य वचन!
ReplyDeleteसही जीवन दृष्टि !
ReplyDeleteजनवरी २००५
ReplyDeleteहमें चिंता से चिन्तन की ओर जाना है, चिंता नश्वर की होती है, चिन्तन शाश्वत का होता है. अपने भीतर छिपे उस तत्व को प्रकट करना है. देह जड़ है, मन, बुद्धि भी जड़ है जड़ का चिन्तन हमें जड़ बना देता है, संवेदनशीलता खो जाती है, बुराई के प्रति हम आँख मूंद लेते हैं. चेतन का चिन्तन सदा प्रकाश से भर देता है, आगे बढ़ने की एक ललक, एक प्यास, एक तड़प, एक अग्नि भीतर जलती रहती है. उसी के प्रकाश से फिर जड़ भी दिव्यता को प्राप्त हो जाता है. मन भावों को जन्म देता है, भीतर एक गीलापन उगता है, जो हमें अपने मूल स्वभाव की ओर ले जाता है.
मैं आत्मा हूँ -एक चैतन्य ऊर्जा ,एनर्जी इन एक्शन ज्योति बिंदु स्वरूप हूँ। मैं शरीर नहीं हूँ। शरीर मेरा है। मैं परमात्मा का दिव्य स्वरूप हूँ।उसी का वंश हूँ। ॐ शान्ति। बेहतरीन पन्ने डायरी के अनिताजी की।
धीरेन्द्र जी, अनुराग जी, प्रतिभा जी, व वीरू भाई आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
ReplyDeleteजब तक चिन्तन और मनन के साथ निदिध्यासन नहीं जुडता तब तक आदर्श मात्र कागज़ पर ही है । प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
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