दिसम्बर २००४
वस्तुओं को देखने का हमारा नजरिया यदि संकुचित होगा तो हमें
दोष ही दोष दिखाई देंगे, हमें अपने दृष्टिकोण को व्यापक बनाना होगा, लोगों की
मानसिकता को समझना होगा, यदि समाज में विषमता है, भ्रष्टाचार है तो उसके लिए हम भी
जिम्मेदार हैं. हमें स्वयं को सुधारने का प्रयत्न करना है. यदि एक अंगुली हम समाज
की ओर उठाते हैं तो चार अपनी ओर भी उठती हैं. समाज में रहकर हम उसके गुण-दोषों से
बच नहीं सकते साथ ही हमें इस बात का भी निरंतर ध्यान रखना होगा कि सृष्टिकर्ता की
नजर से कुछ बचा नहीं है, प्रकृति के कानून से कोई बच नहीं सकता. कुछ वस्तुएं हमें
कितनी भी भयावह दिखाई देती हों पर उनकी भी उपयोगिता है, इसका अर्थ यह नहीं कि हम
हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाएँ, बल्कि यह कि हम बिना प्रभावित हुए अपनी क्षमता के
अनुसार कार्य हाथ में लें. हम यदि अपने इर्द-गिर्द परिवर्तन लाना चाहते हैं तो
हमें अपने भीतर परिवर्तन लाना होगा, हम सभी को स्वीकार कर चलें तो मन से विरोध का
भाव चला जाता है. ईश्वर की जो अनुभूति हमें अपने भीतर होती है, वह कण-कण में होने
लगेगी. हर मन की गहराई में वही परमात्मा है. हमें हर एक के भीतर छिपी उस शक्ति तक
पहुंचना है. आत्मा में स्थित रहकर हम जगत को एक खेल की भांति ही देखते हैं, यहाँ
सब कुछ प्रतिपल बदल रहा है. यहाँ कुछ लोग जगे हैं, कुछ सोये हैं, कुछ बेहोश हैं.
जगे हुए लोगों का साथ हमें भी सजग रखता है. सद्गुरु के अनुसार मन हम नहीं हैं, मन
कल्पनाओं का एक समूह है जो हमें भ्रमित करता है, हमारा उद्गम अनंत है और अनंत ही
हमारा स्वरूप है. यदि हमारे भीतर कोई वासना शेष न रहे तो हम उस ब्रह्म के निकट आ
जाते हैं, वही हमारा लक्ष्य है.
बहुत सही ...
ReplyDeleteइस तरह का कुछ पढना नज़र और नज़ारे बदल सकारात्मक उर्जा प्रदान करता है!
ReplyDeleteआपकी डायरी के पन्ने शीतलता और ज्ञान का सागर हैं!
आभार अनुपमा जी !
Deleteहमें अपने दृष्टिकोण को व्यापक बनाना होगा,
ReplyDeleteसत्य कथन
ReplyDeleteहाँ व्यष्टि से ही समष्टि है व्यक्ति ही समाज की प्रथम और आखिरी इकाई है व्यक्ति सुधरे तो समाज सुधरे। सबको अपनाओ आत्मा समझ निरभिमानी बन। ॐ शान्ति।
सहमत व्यापक द्रष्टिकोण जरूरी है ...
ReplyDeleteसदा जी, रमाकांत जी, वीरू भाई व दिगम्बर जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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