कोऽहम् ? कुतोऽह्म् ? किम् इदम् च विश्वम् ? ऐसे प्रश्नों के
उत्तर जानने हों तो हमें गुरु, शास्त्र या परमात्मा की शरण में जाना होगा..तभी
ज्ञान होता है अपने सही स्वरूप का, अपने सहज मुक्त स्वभाव से हमारा परिचय होता है,
अपने मूल को हम जानते हैं. पता चलता है, हम कहीं से आये नहीं है, नित्य हैं, जगत
ही हममें आता जाता है. यह जगत त्रिगुणात्मक है, जिस तरह सूर्य का प्रतिबिम्ब जल से
भरे घट में दिखाई देता है, वैसे ही देह रूपी घट में मन, बुद्धि रूपी जल में उस
चैतन्य का प्रतिबिम्ब दिखायी देता है, जैसे सूर्य, घट, जल या प्रतिबिम्ब से पृथक
है वैसे ही चैतन्य, देह, मन, बुद्धि से
भिन्न है. हम वही चैतन्य हैं, न जाने कितने जन्मों में कितने देह रूपी घट हमने धारण किये हैं, और
कितना मन रूपी जल उसमें भरा है, कितनी बार घट फूटा, पर सूर्य का प्रतिबिम्ब कभी
नहीं बदला. यह ज्ञान होते ही हम अभय को प्राप्त होते हैं क्योंकि मृत्यु का भय चला
जाता है.
सच!
ReplyDeleteप्रातःकाल की शुभ बेला में सूर्य दर्शन करते हुए आपकी इस बात का [[कितने देह रूपी घट हमने धारण किये हैं, और कितना मन रूपी जल उसमें भरा है, कितनी बार घट फूटा, पर सूर्य का प्रतिबिम्ब कभी नहीं बदला.]]मर्म समझने का प्रयास कर रहे हैं...!
आभार!
अनुपमा जी, बहुत बहुत शुभकामनायें ...इस बात का मर्म समझने से ही जीवन में पूर्णता का अनुभव होता है, ऐसा सन्त कहते हैं
Deleteबिल्कुल सही
ReplyDeleteबढिया
सुंदर।
ReplyDelete" जग का अनुपम प्राणी मानव इस पृथ्वी पर क्यों कर आया ? यह रहस्य तो बना हुआ है किसने क्या खोया क्या पाया ? 'कोहमस्मि' यह प्रश्न तरंगित रहा निरन्तर मानव मन में उत्तर पाता रहा मनुज नित आश्रम के पावन जीवन में ।"
ReplyDeleteजल में कुम्भ ,कुम्भ में जल है बाहर भीतर पानी
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति
न जाने कितने जन्मों में कितने देह रूपी घट हमने धारण किये हैं, और कितना मन रूपी जल उसमें भरा है, कितनी बार घट फूटा, पर सूर्य का प्रतिबिम्ब कभी नहीं बदला. यह ज्ञान होते ही हम अभय को प्राप्त होते हैं क्योंकि मृत्यु का भय चला जाता है
ReplyDeleteपरम सत्य को उद्घाटित करती
सुंदर सृजन ,,,,
ReplyDeleteRECENT POST : सुलझाया नही जाता.