Friday, February 14, 2014

भीतर भरा उजाला जगमग

अगस्त २००५ 
हमारे ही भीतर इतनी सामर्थ्य भरी है कि सितारे यदि गर्दिश में भी हुए तो कुछ न बिगाड़ सकें. हम व्यर्थ ही अपनी शक्ति को कम आंकते हैं अथवा तो व्यर्थ गंवाते हैं. मानव जीवन दुर्लभ है, हम संतों की वाणी में यह पढ़ते हैं. उन्होंने अपने जीवन में भीतर की शक्तियों को उजागर किया और आनंद पाया व लुटाया. संतों, सदगुरुओं का जीवन चरित्र पढ़ें तो पता चलता है उनकी हर श्वास एक आनन्द की धारा से भीतर को स्वच्छ करती है. उनका मन अहोभाव से ओत-प्रोत रहता है. ईश्वर का प्रेम उनके शरीर के हर कण में स्पन्दित होता है. उनका मन ऐसी अलौकिक  शांति से भर जाता है जिसे कोई नाम नहीं दिया जा सकता. हम भी यह सब प्राप्त कर सकते हैं, बस आत्मशक्ति को जगाने भर की देर है.

9 comments:

  1. रोज़ ही आपके आलेख पढ़ने से मन में एक दिव्य प्रकाश की अनुभूति होती है ....!!आभार .

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  2. मानव है खुद सब समाधान ।
    वह नहीं जानता निज वितान।

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  3. बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति।

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  4. आपकी प्रविष्टि् कल रविवार (16-02-2014) को "वही वो हैं वही हम हैं...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1525" पर भी रहेगी...!!!
    - धन्यवाद

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  5. सुन्दर एवं सच्चाई दिखाती बात :-) बहुत सुन्दर

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  6. अनुपमा जी, राजेन्द्र जी, शकुंतला जी, नवीन जी, तथा पांखुरी जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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  7. मन की शक्ति अकूत है मन से हार है मन से जीत। सुन्दर अति सुन्दर विचार

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