अगस्त २००५
हमारे
ही भीतर इतनी सामर्थ्य भरी है कि सितारे यदि गर्दिश में भी हुए तो कुछ न बिगाड़
सकें. हम व्यर्थ ही अपनी शक्ति को कम आंकते हैं अथवा तो व्यर्थ गंवाते हैं. मानव
जीवन दुर्लभ है, हम संतों की वाणी में यह पढ़ते हैं. उन्होंने अपने जीवन में भीतर
की शक्तियों को उजागर किया और आनंद पाया व लुटाया. संतों, सदगुरुओं का जीवन चरित्र
पढ़ें तो पता चलता है उनकी हर श्वास एक आनन्द की धारा से भीतर को स्वच्छ करती है.
उनका मन अहोभाव से ओत-प्रोत रहता है. ईश्वर का प्रेम उनके शरीर के हर कण में
स्पन्दित होता है. उनका मन ऐसी अलौकिक शांति से भर जाता है जिसे कोई नाम नहीं दिया जा
सकता. हम भी यह सब प्राप्त कर सकते हैं, बस आत्मशक्ति को जगाने भर की देर है.
रोज़ ही आपके आलेख पढ़ने से मन में एक दिव्य प्रकाश की अनुभूति होती है ....!!आभार .
ReplyDeleteमानव है खुद सब समाधान ।
ReplyDeleteवह नहीं जानता निज वितान।
बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् कल रविवार (16-02-2014) को "वही वो हैं वही हम हैं...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1525" पर भी रहेगी...!!!
ReplyDelete- धन्यवाद
बहुत बहुत आभार !
Deletebahut hi mahatvpoorn soch .....aabhar
ReplyDeleteसुन्दर एवं सच्चाई दिखाती बात :-) बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअनुपमा जी, राजेन्द्र जी, शकुंतला जी, नवीन जी, तथा पांखुरी जी आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteमन की शक्ति अकूत है मन से हार है मन से जीत। सुन्दर अति सुन्दर विचार
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