अगस्त २००५
परमात्मा
एक है, उसको अनेक लोग अनेक भावों से भजते हैं. शास्त्रों में लिखा है, सत्य, यज्ञ,
तप और दान ये धर्म के चार स्तम्भ हैं जिनके आश्रय से परम शांति का अनुभव किया जा
सकता है. शुद्ध क्रिया ही सत्य का आश्रय लेती है, वही तप स्वरूप है और यज्ञ भी वही
है. शुद्ध क्रिया के लिए ज्ञान और शक्ति का साथ होना आवश्यक है. बांटने का अपना
महत्व है, ईश्वर के गुणों को अपनाते हुए
जो भी हमारे पास प्रचुर मात्र में है बांटना है. जितना आवश्यक हो उससे अधिक की
कामना भी नहीं करनी है, जिस क्षण मन कामना से रहित हुआ, प्रेम उसमें आकर बस जाता
है, साधक के हृदय में अहोभाव की स्थिति बनी रहती है. उसके माध्यम से परमात्मा जो
कराना चाहे वह सदा तैयार रहता है.
" सत्यमेवजयतेनानृतम् ।"
ReplyDeleteनिश्चित रूप से हम सब का परमात्मा एक है ! मगर सभी धर्मों के लोग अलग २ रूप में पूजते है ...
ReplyDeleteRECENT POST - आँसुओं की कीमत.
शकुंतला जी व धीरेन्द्र जी, स्वागत व आभार !
ReplyDelete