अगस्त २००५
जीवन
प्रभु का दिया अमूल्य उपहार है, आनन्द से इसका एक-एक क्षण भरा है, जो डूबता है
इसमें वही उबरता है. इसमें छिपे खजाने को पा लेता है, वही जीवन के रहस्य को जान जाता
है. इतना सुखमय जीवन क्यों किसी के लिए दुःख का कारण बना रहता है ? परम तत्व को
पाए बिना जो जीवन बीतता है वह अधूरेपन का शिकार रहता ही है ! मन को यदि एकाग्र
करना आता नहीं तो विकारों से मुक्त नहीं हो सकते. साधना से यह कला सीखी जा सकती
है, जीवन में सत्संग, सेवा, स्वाध्याय और ध्यान के फूल खिलने लगते हैं और जीवन एक
उत्सव बन जाता है. ऐसे जीवन में ही परम का अवतरण होता है.
ReplyDeleteक्या बात है। बहुत सुन्दर प्रेरक सार वर्षों का युगान्तरों का।
वीरू भाई, स्वागत व आभार !
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