जुलाई २००५
कितना
अद्भुत है वह परमात्मा जो हमारे भीतर छिपा है और प्रेम का ऐसा जाल बिछाता है कि
कोमल हृदय उसमें बंध जाता है. ईश्वर का प्रेम अमूल्य है, अनुपम है, अद्भुत है, उसी
के कारण तुलसी अमर काव्य की रचना करते हैं, सन्त कथावाचक बनते हैं और श्रोता
सुनते-सुनते भाव की गंगा में डूबते उतरते हैं. ईश्वर की कृपा से ही उसका प्रेम
मिलता है, सद्गुरु की कृपा से ही ईश्वर की कृपा मिलती है. राम ही आत्मा है, और लक्ष्मण विवेक, सीता प्रज्ञा है और हनुमान ज्ञान. हमारी आत्मा के चारों ओर अभी विवेक की जगह अविवेक है, प्रज्ञा की जगह अविद्या और ज्ञान की जगह अज्ञान, तभी राम भी दूर लगते हैं.
बहुत सुंदर बात ....श्री राम चन्द्र कृपालु भज मन .....हरण भव भय दारुणम ...!!
ReplyDelete"जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहिं ।
ReplyDeleteप्रेम-गली अति सॉकुरी ता में दो न समाहिं ॥"
कबीर
aapki ye panktiyan man ko bohat sukoon deti hain..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपका मैं अपने ब्लॉग ललित वाणी पर हार्दिक स्वागत करता हूँ ..एक बार यहाँ भी आयें और अवलोकन करें, धन्यवाद।
अति सुन्दर कृष्ण कृपा ज़रूरी है भक्ति के साथ जिस पर कृष्ण की दया हो वही वैकुण्ठ पाता। सहज सरल है कृष्ण भक्ति कृष्ण नाम लेना।
ReplyDelete
ReplyDeleteसच है कृष्ण की कृपा से ही कृष्ण मिलते हैं।
अनुपमा जी, शकुंतला जी, अपर्णा जी, वीरू भाई तथा ललित जी आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDelete