Sunday, February 16, 2014

मिलता वह एक पल में ही है

अगस्त २००५ 
जो सहज अवस्था है वह सभी को नित्य प्राप्त हो सकती है पर अप्राप्त है, जो जानना चाहता है उसी को वह प्राप्त होती है, उसके लिए जब जिज्ञासा जोरदार होगी तभी वह मिलेगी. जो सदा है, हर काल में है तो भी हमें प्रतीत नहीं होता इसका अर्थ है हमारे ही भीतर उसको पाने की तड़प कम है. अंतःकरण की शुद्धि धीरे-धीरे होती है तभी हमें ईश्वर का अनुभव धीरे-धीरे होता हुआ लगता है, किन्तु वह वर्तमान की जरूरत है, वह इतना निकट है कि उससे निकट कुछ और हो भी नहीं सकता, वह इतना दूर भी भी है कि संसार ही दीखता है वह कहीं नजर नहीं आता, फिर लगता है शायद कभी भविष्य में मिलेगा, पर वह वर्तमान में ही मिलेगा, मिलेगा कहना भी ठीक नहीं है, वह तो सदा मिला ही हुआ है हम ही आँखें बंद किये बैठे हैं. ऊपर-ऊपर से ऐसा लगता है ज्ञान से दूर हो रहे है पर भीतर जाते ही वही पुनः प्रकट हो जाता है, जैसा थोड़ी सी धूल को झाड़ देने से ही स्वच्छता प्रकट हो जाती है. 

5 comments:

  1. कहॉ छिपा है सामने आ प्रभु । तुझ बिन अ‍ॅखियॉ प्यासी हैं ।

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  2. मोकु कहाँ ढूंढें रे बंदे मैं तो तेरे पास में। सुन्दर विचार

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  3. अंतःकरण की शुद्धि धीरे-धीरे होती है तभी हमें ईश्वर का अनुभव धीरे-धीरे होता हुआ लगता है, किन्तु वह वर्तमान की जरूरत है, वह इतना निकट है कि उससे निकट कुछ और हो भी नहीं सकता.....badhiya.

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  4. बहुत ही सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति।

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  5. शकुंतला जी, वीरू भाई, राहुल जी, तथा राजेन्द्र जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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