Wednesday, February 12, 2014

कालातीत से प्रीत लगायें

अगस्त २००५ 
भूत का शोक, भविष्य से भय तथा वर्तमान में मोह जब तक बना हुआ है तब तक हम काल के वश में हैं. जब कालातीत भगवान से प्रीति हो जाती है तब ही पहली बार आनन्द का अनुभव होता है. जब हमें धर्म-अधर्म, श्रेय-प्रेय, उचित-अनुचित का बोध होता रहता है, वर्तमान में टिकना सहज होता है. जो जिस क्षण में घटता है वह उस क्षण की मांग होती है, यह स्वीकार करने से न भूत का शोक होता है न भविष्य से भय लगता है. यदि मन में विरोध का फल बोया तो भविष्य में उसका फल खाना पड़ेगा. अतः हमें अपने हृदय की समता बनाये रखनी है और काल के बंधन से मुक्त होना है.

5 comments:

  1. जब कालातीत भगवान से प्रीति हो जाती है तब ही पहली बार आनन्द का अनुभव होता है...

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  2. गत आगत की सोच छोडकर प्रभु के गुण हम सब गायें । प्रशंसनीय प्रस्तुति ।

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  3. सुन्दर है भाव अर्थ और विचार।

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  4. राहुल जी, अनुपमा जी, शकुंतला जी व वीरू भाई आप सभी का स्वागत व आभार !

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