जुलाई २००५
ध्यान
में स्वयं के बारे में सच्चाई प्रकट होती है. अपने को जाने बिना हमारे भीतर का
संताप मिटने वाला नहीं है. श्वास के सहारे भीतर उतरने पर ही मुक्त अवस्था का अनुभव
होता है, जहाँ देह का बोध नहीं रहता, मात्र चेतना का ही साम्राज्य रहता है. ज्ञात
होता है कि चित्त ही काया बनता जाता है, हम देखते हैं जैसे ही चित्त पर कोई तरंग
उठती है वैसे ही काया पर भी तरंगे उठती हैं. विकारों से मुक्ति तभी होती है,
अनुभूति के स्तर पर जब हम विकार को गिरते हुए देखते हैं तो उसकी शक्ति खत्म होती
जाती है. सत्य यही है कि भीतर जाकर ही हम विचारों से परे एक मुक्त अवस्था का अनुभव
कर सकते हैं.
सार्थक चिंतन ....सुंदर संदेश ....!!
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