अप्रैल २००७
जिस तरह मिट्टी अग्नि में
तपकर प्याला बन जाती है और उपयोग में आती है, वैसे ही हमारा यह माटी का तन जब
ईश्वर की लगन रूपी लौ में तप जाता है तब यह उसके हाथों का उपकरण बन जाता है और काम
में आता है. ईश्वर की लगन भी क्रमशः तीव्रतर होती जाती है, पहले राख में छिपी
अंगारे की तरह जो ऊपर से दिखायी भी नहीं देती, हमारे भीतर छिपी रहती है, फिर तपते
हुए लाल अंगारे की तरह जो प्रकाश भी देता है व ताप भी, फिर गैस की नीली लपट की तरह
और फिर माइक्रोवेव ओवन की तरह जो नजर भी नहीं आती बस चुपचाप अपना काम करती रहती
है. ज्ञान पा लिया है साधक को यह अहंकार भी छोड़ना होगा पर नहीं मिला है, सदा यह
संदेह भी नहीं रखना है. मध्यम मार्ग पर चलना श्रेष्ठ है. आत्मा का परमात्मा से
नित्य का संबंध है, हमें बनाना नहीं है, हम स्वयं आत्मा हैं यह बात जितनी भीतर दृढ़
हो जाएगी तो उतना ही हम परमात्मा से अभिन्नता अनुभव कर सकेंगे, और तब शेष ही क्या
रहा ?
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