मई २००७
संत कहते हैं, मृत्यु से
हमें भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है, हम तो हर पल उसकी ओर कदम दर कदम चल ही रहे
हैं. हर श्वास जो बाहर जाती है, वह छोटी मृत्यु ही है. एक नियम के अनुसार हमारी
मृत्यु होनी ही है, जो अवश्यम्भावी है उससे डरना व्यर्थ है. हमारे भीतर गुप्तचित्र
है, जिसके आधार पर हमारा अगला जन्म होता है. इस प्रकृति में सभी कुछ स्वभाव से हो
रहा है, पर अहंकार यह मानता है कि वह कर्ता है, यही कर्म बाँधता है. जो कर्म हम
वर्तमान में बांधते हैं वह भविष्य में फल रूप में सामने आते हैं. मन, वचन, काया की
जो भी क्रिया हम करते हैं वह सभी पूर्व के कर्मों के फलस्वरूप ही मिले हैं. सजग
रहकर हम कर्म करने में बदलाव ला सकते हैं, हम इस जीवन में क्षण-प्रतिक्षण जैसा भाव
बनाते हैं वही बंधता है, यदि भाव शुद्ध हो तो कर्म नहीं बँधते और हम मुक्ति की तरफ
ही बढ़ते जाते हैं.
जो है ,जैसा है , उसी से संतोष कर लेने में ही शांति मिलेगी।
ReplyDeleteसही कहा है आपने, स्वागत व आभार !
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