Friday, November 21, 2014

प्रेम बिना सब सूना सूना

मई २००७ 
हमारे भीतर प्रेम का अनंत खजाना है, करुणा का अथाह सागर है और सत्य तो हमारी आत्मा का स्वरूप ही है. हम इन्ही तत्वों से तो बने हैं, ये हमें कहीं से लाने नहीं, हमें इन्हें लुटाना है क्योंकि ये कभी खत्म न होने वाला भंडार है. हम देखेंगे जितना-जितना हम इसे बांटते हैं उतना-उतना यह भीतर से और स्रावित होता है. यही सेवा है. हम यदि आध्यात्मिक जीवन जीना चाहते हैं तो इस मार्ग के अलावा और कोई मार्ग नहीं. ज्ञान मुक्त करता है पर बिना प्रेम के वह मुक्ति अहंकार में बदल सकती है. ईश्वर के प्रति प्रेम हमें आनंद से भर देता है पर उस आनंद को जब हम भोगने लगते हैं तो फिर अटक जाते हैं, सेवा ही सच्चा मार्ग है, जिस पर हमें चलना है. 

3 comments:

  1. ईश्‍वर के प्रति प्रेम हमें आनंद से भर देता है ..... सच

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  2. हरि व्यापक सर्वत्र समाना ,

    प्रेम ते प्रकट हुई मैं जाना।

    सुंदरम मनोहरं। सदैव की तरह सशक्त स्वर

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  3. सदाजी व वीरू भाई, स्वागत व आभार !

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