अप्रैल २००७
कभी-कभी साधक
को लगता है जैसे कुछ छूटा जा रहा है, लेकिन वह क्या है उस पर ऊँगली रखना कठिन है.
भीतर एक बेचैनी सी होती है, मगर इतनी तीव्र भी नहीं, बस मीठी-मीठी आँच सी बेचैनी.
उसे लगता है ईश्वर ने उसे इतना ज्ञान, इतना प्रेम और इतना समय दिया है उसका लाभ जग
को नहीं मिल रहा है, वह तो हर पल सौ प्रतिशत लाभ में ही है. उसे ज्ञात हो गया है
कि भुक्ति, मुक्ति और भक्ति ये तीन पदार्थ हैं, जिनमें से किसी को भी पाना है तो
हमें वर्तमान में जीना शुरू कर देना चाहिए. जो भी घटित होता है वह वर्तमान में ही
होता है. भूत हो चुका, भविष्य अभी हुआ नहीं. भूत में चिंता है, भविष्य में डर है, आनंद
वर्तमान में ही है.
बिलकुल सच..वर्त्तमान ही सत्य है, वर्त्तमान ही आनंद है...
ReplyDeleteजो है यानी वर्तमान वही सत्य है। वर्तमान ही अतीत बनता है और वर्तमान ही भविष्य का रचता है। हमारे दुःख का एक कारण यह भी है हम या तो अतीत में जीते हैं या भविष्य में। या तो तुलना करते रहते हैं इसीलिए जो जैसा है उसे हम कभी जान ही नहीं पाते। मुग़ालतों में ही ज़िंदगी निकल जाती है।
ReplyDeleteवर्तमान को कभी न खोना । नूतन - बीज आज तुम बोना ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ।
कैलाश जी, शकुंतला जी और वीरू भाई, स्वागत व आभार !
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