Thursday, November 20, 2014

दर उसका है मंजिल जिसकी

मई-२००७  
ईश्वर विभु है और आत्मा अणु, दोनों एक ही तत्व से बने हैं. जिसे जीने की इच्छा हुई वह आत्मा जीव कहलायी तथा जिसे जीने की इच्छा नहीं है वही तो परमात्मा है. ‘वह है’ बस इसी तक हमें पहुंचना है अर्थात ‘मैं हूँ’ से ‘यह है’ तक का सफर ही साधना है. आत्मा का अनुभव पहले अपने भीतर होता है फिर उसी को सभी के भीतर हम देखते हैं. कृष्ण कहते हैं जो सबमें मुझे और मुझमें सबको देखता है वही वास्तव में देखता है. अहंकार की छुट्टी हो जाती है और हम उसके चंगुल से बच जाते हैं. अभी तक तो हम अपने कर्मों के द्वारा भटकाए जाते रहे हैं पर ईश्वर के द्वार पर आकर यह भटकन समाप्त हो जाती है. 


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