अप्रैल २००७
सद्गुरू
हमें वाणी के द्वारा ज्ञान देते हैं, सही-सोच बनाने में सहायता करते हैं. एक साधक
को चेतना के विकास के लिए श्रवण करना चाहिए. शास्त्रों को सुनने से जीवन में सुखद
परिवर्तन आता है. अच्छा सुनना साधना की पहली सीढ़ी है. नितांत एकांत में भी हम
सुनते हैं, प्रकृति से भी हम सुनते हैं. भद्र सुनने से हम भद्रता को संग्रहित करते
हैं, अपने को सही रखना सीखते हैं. निर्विषयता, निर्विकारता तभी आती है, भ्रम और भय
से मुक्ति मिलती है, जब हम सही सुनते हैं. जीवन में रस तभी आता है, उत्साह आता है,
हमारा चिन्तन सकारात्मक होता है, मोह नष्ट होता है और अपने स्वरूप की झलक मिलती है,
बोध जगता है. वाणी भगवान का बीज है, जो समय आने पर भक्ति का वृक्ष बनता है. जिसमें
प्रेम के सुंदर फल लगते हैं, उन फलों में सेवा की मिठास होती है. चेतना को संकीर्णता
से ऊपर उठाकर परमात्मा के निकट ले जाना सीखते हैं जो उस पर कृपा का जल बरसाते हैं,
ज्ञान की खाद देते हैं और हृदय सुंदर भावनाओं का उपवन बन जाता है, वहाँ जाकर मन को
विश्राम मिलता है, बुद्धि भी वहाँ शांत होकर सजगता को प्राप्त होती है.
हृदय सुंदर भावनाओं का उपवन बन जाता है, वहाँ जाकर मन को विश्राम मिलता है, बुद्धि भी वहाँ शांत होकर सजगता को प्राप्त होती है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर एवं सार्थक ....मन को विश्रांति देते शब्द !!
स्वागत व आभार, अनुपमा जी
Deleteअच्छा सुनना साधना की पहली सीड़ी है ...
ReplyDeleteआत्मसात करने का प्रयास कर रहा हूँ ...
सुनना आरम्भ करें..शेष सब होता जायेगा, आभार !
Deleteसत्य वचन। अच्छी बातें देखने, सुनने, जानने से अपने अंदर की अच्छाई भी दृढ़ होती जाती है
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