Wednesday, March 28, 2018

तेरी महिमा तू ही जाने


२८ मार्च २०१८ 
हमारे शास्त्र कितने अद्भुत हैं, सचमुच वे परमात्मा की वाणी ही हो सकते हैं, मानव का अंतर उस विशालता का अनुभव कैसे कर सकता है जिसका वर्णन शास्त्रों में मिलता है. उस विराट पुरुष का जो हिरण्यगर्भ है. जिसके भीतर यह अनंत ब्रह्मांड समाया है. जो कभी वृद्ध नहीं होता, अजर है, अमर है, यह जगत जिसकी क्रीड़ास्थली है. जो सदा है, हर काल और देश में है और देश-काल से परे भी है. जो हर आत्मा की गहराई में भी है. जिसे कण भर भी छूकर मन तृप्त हो जाता है. नाम-रूप से बना यह जगत कितना भी मोहक क्यों न हो, उस असीम की शोभा निराली है. जिसके होने मात्र से ब्रह्मांड बनते और बिगड़ते हैं, मन, बुद्धियाँ चलायमान होती हैं, उस परम के प्रति श्रद्धा का जन्म भी उसकी कृपा से ही होता है.

2 comments:

  1. एक शाश्वत सत्य की सटीक अभिव्यक्ति..

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  2. स्वागत व आभार कैलाश जी !

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